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shabe barat azadi tauba aur magfirat की रात

शबे-बरात की फ़ज़ीलत

शबे-बरात इस्लामिक कैलेंडर की एक मुबारक रात है, जिसे रहमत, मग़फिरत और गुनाहों से आज़ादी की रात कहा जाता है। इस तहरीर में शअबान और शबे-बरात की फ़ज़ीलत, हदीसों से इसकी अहमियत, और इसमें की जाने वाली इबादत और दुआ के बारे में  तफसील से बताया गया है।

शअबान का महिना 


रजब और रमज़ान इन दो महीनों के बीच में एक अज़ीम और मुबारक महीना अल्लाह तबारक व तआला ने दिल और जिगर की तहारत, फ़िक्र और शऊर की पाकीज़गी और दिल-ओ-दिमाग़ को रौशन और मुनव्वर करने के साथ-साथ दामन में ख़ैर-ए-कसीर जमा करने के लिए मुसलमानों को अता फ़रमाया है जिसे शाबान-उल-मुअज़्ज़म कहा जाता है। इस मुबारक महीने की बहुत सारी फ़ज़ीलतें और बरकतें हैं। इस मुकद्दस महीने में बड़े-बड़े और अहम उमूर का फ़ैसला होता है। एक शाबान से लेकर दूसरे शाबान तक होने वाले तमाम कामों का फ़ैसला भी इसी महीने में होता है और वे तमाम उमूर फ़रिश्तों के हवाले कर दिए जाते हैं। पैदा होने वाले का नाम, मरने वालों का नाम, निकाह करने वालों का नाम और कितना रिज़्क़ दिया जाएगा, इन तमाम बातों का फ़ैसला इसी बाबरकत महीने में होता है। यह महीना बहुत ही ख़ैर-ओ-बरकत का महीना है, इस्तग़फ़ार-व-तौबा का महीना है, और कसरत के साथ मुस्तफ़ा करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम पर दुरूद शरीफ़ पढ़कर अपने दिल की तारीकी दूर करने का महीना है।

शअबान-उल-मुअज़्ज़म और दरूद पाक का विर्द

पीरान-ए-पीर, रोशन-ज़मीर, शाहबाज़ ला-मकानी, ग़ौस-ए-जीलानी, ग़ौस-ए-समदानी, ग़ौस-ए-सकलैन, नूर-ए-नज़र हसन-व-हुसैन, हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म शेख़ अब्दुलक़ादिर जीलानी रज़ी अल्लाहु तआला अनहु फ़रमाते हैं:
यह वह महीना है जिसमें भलाई के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, बरकतें नाज़िल होती हैं, ख़ताएँ छोड़ दी जाती हैं, गुनाह मिटा दिए जाते हैं और मख़लूक में सबसे बेहतरीन ज़ात मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम पर कसरत के साथ दुरूद भेजा जाता है क्योंकि यह महीना ही नबी-ए-मुख़्तार पर दुरूद शरीफ़ भेजने का है।
(गुनियतुत-तालेबीन ज 1, स 188)

पढ़ो मोमिनों मुस्तफ़ा पर दुरूद
मुहम्मद हबीब-ए-ख़ुदा पर दुरूद
ख़ुदा का यह है हुक्म क़ुरआन में
पढ़ो ख़ातिमुल-अंबिया पर दुरूद

सबसे बड़ी फ़ज़ीलत

शाबान-उल-मुअज़्ज़म की बहुत सी फ़ज़ीलतें आपने सुनी हैं मगर इस मुकद्दस महीने की सबसे बड़ी फ़ज़ीलत यह है कि इस माह की पंद्रहवीं तारीख़ को एक ऐसी रात है जिसे बरकतों की रात कहते हैं, रहमतों की रात कहते हैं, बख़्शिश की रात कहते हैं, निजात की रात कहते हैं यानी शब-ए-बरात कहते हैं। अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है: "क़सम है इस रौशन किताब की, बेशक हमने इसे बरकत वाली रात में उतारा, बेशक हम डर सुनाने वाले हैं, इसमें बांट दिया जाता है हर हिकमत वाला काम।"
(सूरह-दुखान)

शब-ए-बरात क्या है?

यह वह रात है जिसमें बरकतें नाज़िल होती हैं, यह वह रात है जिसमें अहम उमूर का फ़ैसला बारगाहे-रब्बुल-इज़्ज़त से होता है। यह वह रात है जिसमें इंसान की तक़दीर का फ़ैसला होता है। यह वह रात है जिसमें क़िस्मत जगाई जाती है, यह वही रात है जिसमें आमाल सँवारे जाते हैं, यह वह रात है जिसमें रहमत के ख़ज़ाने लुटाए जाते हैं, यह वह रात है जिसमें नसीबा चमकाया जाता है, यह वह रात है जिसमें रहमत की सदाएँ आती हैं, यह वह रात है जिसमें ख़ुदा अपने बंदों की तरफ़ अपनी ख़ास रहमतों और तजल्लियों के साथ नज़र-ए-करम फ़रमाता है, यह वह रात है जिसमें आम बख़्शिश का एलान होता है, यह वह रात है जिसमें क़ुरआन की तिलावत करके दिलों का ज़ंग दूर किया जाता है। हाँ, हाँ! यह वह रात है जिसमें ज़िक्र-व-इबादत के ज़रिए रब्बे-क़दीर की बारगाह का क़ुर्ब हासिल किया जाता है। अरे यह वही रात है जिसका एक-एक लम्हा नूरो-निखत में और बारिशे-नूरो-रहमत में डूबा हुआ है।

ज़िंदगी हुस्न लुटाती ही चली आज की रात
सदक़ा-ए-नूर से कितनी भली है आज की रात
आज की रात बहारों को मिली रअनाई
खिल उठी पाक मुरादों की कली आज की रात

और
इस शब की फ़ज़ीलत क़ुरआन में अल्लाह ने है ख़ुद फ़रमाया।
यह रात मुक़द्दस है जिसमें मक़बूल इबादत है।

भलाई के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं:

हज़रत-ए-आइशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाहु तआला अन्हा फ़रमाती हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम को फ़रमाते सुना कि अल्लाह तआला चार रातों में ख़ैर-ओ-भलाईयाँ खोल देता है।
(1) बकरा ईद की रात,
(2) ईद-उल-फ़ित्र की रात,
(3) पंद्रहवीं शाबान की रात यानी शब-ए-बरात, जिसमें मौत और रिज़्क़ का फ़ैसला किया जाता है, इस में इस बात का भी फ़ैसला किया जाता है कि कौन इस साल हज करेगा,
(4) अर्फ़ा की रात यानी नौवीं ज़िल-हिज्जा की रात।
(इन चार रातों में अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त भलाइयों के दरवाज़े अपने बंदों के लिए खोल देता है।)
(दुर्रे-मंसूर ज 13, स 255,)

वज़ाहत
इस हदीस-ए-पाक से मालूम हुआ कि शब-ए-बरात उन मुबारक रातों में से एक है जिसमें अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त ख़ैर-ओ-भलाई और नेकियों के दरवाज़े खोल देता है ताकि उसके गुनहगार बंदे रब की रहमत और मग़फ़िरत के ख़ज़ाने हासिल कर सकें और भलाइयों को अपने दामन में समेट कर अपनी दुनिया और उक़बा को सँवार सकें।
हज़रत अताअ इब्ने-यसार रहमतुल्लाहि तआला अलैह से रिवायत है कि जब पंद्रहवीं शाबान की रात होती है तो मलिक-उल-मौत को एक सहीफ़ा (रजिस्टर) दिया जाता है। उसमें जो दर्ज होता है, उसकी जान क़ब्ज़ कर लेता है।
एक आदमी बिस्तर लगाता है, औरतों से शादी करता है, इमारतें बनाता है जबकि उसका नाम मुर्दों में लिखा जा चुका होता है।
(दुर्रे-मंसूर ज 13, स 255)
हज़रत अब्दुल्लाह इब्न-ए-अब्बास रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी है कि बेशक अल्लाह तआला पंद्रहवीं शाबान की रात को मामलात के फ़ैसले फ़रमाता है और सत्ताईस रमज़ान यानी शब-ए-क़दर में उन फ़ैसलों को उनके असहाब के सुपुर्द कर देता है।
(रूह-उल-बयान ज 25, स 156)

शबे-बरात रहमत और बख़्शिश की रात

शब-ए-बरात की एक अज़ीम ख़ुसूसियत और फ़ज़ीलत यह है कि जैसे ही यह रात अपनी तमाम तर जलवा सामानीयों के साथ और अपनी बेशुमार बरकतों के साथ रौनक अफ़रोज़ होती है, तो रब की जानिब से रहमतों का नुज़ूल होने लगता है और बख़्शिश व मग़फ़िरत का ऐलान-ए-आम होने लगता है।
चुनांचे: मेरे आका करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं,
बेशक अल्लाह तआला इस रात में मेरी उम्मत पर क़बीला बनी कल्ब की बकरियों के बालों की तादाद के बराबर रहमतें नाज़िल फ़रमाता है।
(हाशिया अल-सावी ज 3, स 459)

उम्मुल मोमिनीन, ज़ौजा-ए-सय्यदुल मुर्सलीन सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम. हज़रत आइशा सिद्दीक़ा तय्यिबा ताहिरा रज़ी अल्लाहु तआला अन्हा से मर्वी है कि एक रात मैंने रसूलुल्लाह को ग़ुम पाया (यानी इस रात मैंने हुज़ूर को अपने बिस्तर पर नहीं पाया)। मैं हुज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की तलाश में बाहर-निकली, तो-मैंने देखा के हुज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम जन्नत-उल-बक़ी क़ब्रिस्तान-में तश-रीफ फ़रमा हैं। जब हुज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की नज़र-मुझ-पर पड़ी तो फ़रमाया, ऐ आइशा, क्या तुम्हें इस बात का ख़तरा था कि अल्लाह और उसका रसूल तुम पर ज़ुल्म करेंगे?" मैंने अर्ज़ की, "या रसूलुल्लाह, मेरा यह गुमान नहीं था, बल्कि मैंने यह गुमान किया था कि शायद आप अपनी दूसरी अज़्वाज के पास तशरीफ़ ले गए हैं।"
आप ने फ़रमाया, "बेशक अल्लाह अज़्ज़ व जल पंद्रहवीं शाबान की रात यानी शब-ए-बरात में आसमान-ए-दुनिया की तरफ़ (अपनी शान के मुताबिक़) नाज़िल होता है और क़बीला बनी कल्ब की बकरियों के बालों की तादाद से ज़्यादा लोगों के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है।"
(इब्न माजा स 99, हदीस नंबर 1389; तिर्मिज़ी हदीस नंबर 739; ग़नियात-उल-तालेबीन ज 1, स 191)

वज़ाहत:
इस हदीस-ए-पाक से चंद बातें मालूम हुईं,
(1) शब-ए-बरात बहुत अज़मत और फ़ज़ीलत वाली और ख़ास रात है।
(2) मालूम हुआ कि मुबारक रातों में क़ब्रों की ज़ियारत करना और मरहूमीन के लिए दुआ-ए-मग़फ़िरत करना यह हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की सुन्नत है। यही वजह है कि पूरी दुनियाए सुन्नियत में मुसलमान शब-ए-बरात में अपने आका की इस मुबारक सुन्नत पर अमल करते हुए क़ब्रिस्तान जाते हैं, क़ब्रों की ज़ियारत करते हैं और तमाम सुन्नी मरहूमीन के लिए मग़फ़िरत व बख़्शिश की दुआ करते हैं।
(3) इस रात में इतने गुनहगारों की बख़्शिश कर दी जाती है कि इसका शुमार नहीं किया जा सकता।

सदाए रहमत

हज़रत अली बिन अबी तालिब, शेर-ए-ख़ुदा रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी है कि रसूल-ए-अक़दस सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया, जब पंद्रहवीं शाबान की रात हो, तो इस रात में क़ियाम करो, नफ़्ली नमाज़ें पढ़ो और इसके दिन में रोज़ा रखो। क्योंकि अल्लाह सुब्हानहु इस रात में आफ़ताब डूबने के बाद आसमान-ए-दुनिया की तरफ़ नाज़िल होता है और फ़रमाता है, सुनो, कोई बख़्शिश तलब करने वाला है जिसे मैं बख़्श दूं? कोई रिज़्क़ और रोज़ी का तलबगार है जिसे मैं रिज़्क़ अता करूं? कोई मुसीबत में फंसा हुआ है जिसे मैं मुसीबत और बला से छुटकारा दूं? सुनो, कोई है फलां हाजत वाला, फलां ज़रूरत वाला?' यहाँ तक कि सुबह-ए-सादिक़ नुमूदार हो जाती है।"
(इब्न माजा स 99, हदीस नंबर 1388; शुअब-उल-ईमान हदीस नंबर 3822)

मैं तो माइल-ए-करम हूँ कोई साइल ही नहीं
राह दिखाऊं किसे कोई साइल ही नहीं

वज़ाहत:
मालूम हुआ कि शब-ए-बरात इतनी अज़ीम और मुबारक रात है कि जिसमें खुद अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त अपनी रहमत और करम के साथ अपने बंदों की तरफ़ मुतवज्जे होता है और अपने गुनहगार बंदों के गुनाह माफ़ फ़रमा देता है। बंदे इस रात में अपने माबूद से जो-जो मांगते हैं, अल्लाह तआला उनकी हर हाजत व ज़रूरत को पूरी फ़रमा देता है। इसलिए मेरे बुज़ुर्गों और दोस्तों! इस रात में अल्लाह की इबादत व बंदगी करें, अपनी हाजतें और ज़रूरतें उसकी बारगाह में पेश करें, खूब रो-रो कर अपने गुनाहों से तौबा व इस्तग़फ़ार करें और दुआएं मांगें। पंद्रह शाबान के दिन में रोज़ा रखें।

हज़रत उस्मान बिन अबी अल-आस रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी है कि नबी करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया, जब पंद्रहवीं शाबान की रात आती है यानी शब-ए-बरात तो एक मुनादी निदा करता है, एक आवाज़ देने वाला आवाज़ देता है: 'कोई बख़्शिश तलब करने वाला है कि मैं उसे बख़्श दूं, कोई साइल है कि मैं उसका सवाल पूरा कर दूं, उसकी मुरादें पूरी कर दूं।
अल्लाह तआला हर साइल और मंगते के दामन को मुरादों से भर देता है, मगर फाहिशा (रंडी) और शिर्क करने वाला यानी अल्लाह के सिवा किसी और झूठे माबूद जैसे बुत, पत्थर, दरख़्त और नदी पहाड़ वग़ैरा की इबादत करने वाले को इस रात में भी अल्लाह तआला माफ़ नहीं फ़रमाता है।
(दुर्रे मंसूर ज 5, स 742; कनज़ुल उम्माल ज 12, स 140; शुअब-उल-ईमान ज 3, स 383,)

आज़ादी की रात

शब-ए-बरात की एक ख़ास फ़ज़ीलत यह है कि इस रात में अल्लाह जल्ला शानुहु अपने हबीब सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की उम्मत के बेशुमार गुनहगारों को जहन्नम से आज़ाद फ़रमा देता है।
चुनांचे हदीस-ए-पाक में है,
उम्मुल मोमिनीन, ज़ौजा-ए-सय्यदुल मुर्सलीन, हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाह तआला अन्हा फ़रमाती हैं कि पंद्रहवीं शाबान की रात मैंने नबी-ए-अक़दस सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम को देखा कि हुज़ूर सज्दे में हैं और दुआएं कर रहे हैं। हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर-ए-ख़िदमत हुए और अर्ज़ किया, "या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम, अल्लाह तबारक व तआला ने आज रात आपकी शफ़ाअत से आपकी एक-तिहाई उम्मत को जहन्नम से आज़ाद फ़रमा दिया है।
नबी करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम और दुआ करने लगे तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम फिर हाज़िर-ए-दरबार-ए-अक़दस हुए और खुदा का पैग़ाम सुनाते हुए अर्ज़ किया, "अल्लाह तआला ने आपको सलाम भेजा है और आपकी आधी उम्मत को दोज़ख़ से आज़ाद फ़रमा दिया है।
अभी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने दुआ बंद नहीं की, बल्कि पहले से ज़्यादा अल्लाह तआला से दुआएं करने लगे। फिर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम खुदा का हुक्म लेकर बारगाहे-रिसालत मआब में हाज़िर हुए और कहा, "या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम, बेशक अल्लाह तआला ने आपकी तमाम उम्मत को आज़ाद फ़रमा दिया है। सिवाए उनके, जिनका किसी से झगड़ा हो और आपस में दुश्मनी हो, यहाँ तक कि वह राज़ी हो जाएं और आपस में सुलह कर लें।
जब पैग़ाम-ए-ख़ुदावंदी हुज़ूर-ए-अक़दस सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने सुना, तब भी आपके दिल को क़रार नहीं मिला क्योंकि अब भी हुज़ूर की उम्मत के वो लोग बख़्शिश से महरूम हैं जिनके बीच झगड़ा है। इसलिए हुज़ूर दुआ में मसरूफ़ हो गए। सुबह तक हुज़ूर दुआ करते रहे।
इतने में हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम सरकार-ए-अक़दस की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया, "या रसूलुल्लाह, बेशक अल्लाह तआला ने इस बात की ज़मानत ले ली है कि आपकी उम्मत के वो लोग जिनके बीच झगड़ा हो और नाराज़गी हो, उन्हें अपने फज़्ल व रहमत से राज़ी और सुलह करा देगा।"
(रूह अल-बयान ज 8, स 449)

यह पैग़ाम सुनकर हुज़ूर शफ़ीअ-उल-मुज़्निबीन सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम खुश हुए।
आला हज़रत सरकार फ़रमाते हैं:

ग़मज़दों को रज़ा मोज़्दा दीजिए कि हैं
बे-क्सों का सहारा हमारा नबी सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम

हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रज़ी अल्लाह तआला अन्हा से मर्वी है कि हुज़ूर रहमत-ए-आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:
"ऐ आइशा, क्या तुझे इस बात का अंदेशा था कि अल्लाह अज़्ज़ व जल और उसके रसूल सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम तेरे साथ नाइंसाफ़ी करेंगे? सुनो, मेरे पास जिब्रील अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और उन्होंने फ़रमाया कि शब-ए-बरात ऐसी रात है जिसमें अल्लाह तआला बनी कल्ब की बकरियों के बालों के बराबर लोगों को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है। (लेकिन) अल्लाह तआला इस रात में मुशरिक, कीना परवर, रिश्ता तोड़ने वाला, कपड़े तकब्बुर से लटका कर चलने वाला, वालिदैन की नाफ़रमानी करने वाला और शराबी की तरफ़ नज़र-ए-रहमत नहीं फ़रमाता है। यह लोग इस रात में भी रहमत से महरूम हो जाते हैं।"
(कनज़ुल उम्माल, ज स 141)

इन अहादीस-ए-करीमा से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला शब-ए-बरात में बेशुमार लोगों को जहन्नम की आग से आज़ाद फ़रमा देता है और अपने फज़्ल व करम और अपनी रहमत से उन्हें जन्नत का हक़दार बना देता है। हाँ, कुछ लोग हैं जो इस मुबारक रात में भी रब की रहमतों और मेहरबानियों से महरूम रहते हैं। इंशाअल्लाह, उनके बारे में हम ‘पार्ट2’ में आपको तफ़्सील के साथ बताएंगे कि वह कौन लोग हैं जो इस रात में महरूम रह जाते हैं और उन्हें क्या करना चाहिए कि वह भी बख़्श दिए जाएं और निजात पा जाएं।


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