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salam aur darood ki ahmiyat v fazilat: हदीस की रौशनी में


अस्सलामु अलैकुम व-रहमतुल्लाहि व-बरकातुहु

दोस्तों इस तहरीर में सलाम और दरूद की अहमियत व फज़ीलत को हदीस-ए-मुबारक की रोशनी में समझाया गया है। आप जानेंगे कि सलाम और दरूद पढ़ने से हमें कितनी नेकी, बरकत और मोहब्बत हासिल होती है। सलाम करने और सही तरीके से उसकी तामील  करने का तरीका बताया गया है। इसके साथ ही दरूद शरीफ पढ़ने के बेहतरीन फायदे भी इसमें तहरीर  हैं।

दोस्तों: हम और आप आम तौर पर मुलाकात के वक्त सलाम करते हैं। और हुक्म भी यही है के जब एक दुसरे से मुलाक़ात करो तो सलाम करो। सलाम की अहमियत पर दो हदीस ए करीमा पढ़ लीजिए, जिनसे अंदाज़ा होगा कि सलाम करने में किस क़दर ख़ैर और बरकत, मोहब्बत और मुअद्दत है और किस क़दर सवाब का वादा अल्लाह अज़्ज़-व-जल के मुक़द्दस रसूल सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया है। हमारे घरों में दौलत आ रही है लेकिन मोहब्बत रुख़्सत होती जा रही है... और सलाम ऐसा मुफ़ीद और फाएदे मंद अमल है जिसकी बरकत से माल, औलाद और मोहब्बत सब में इज़ाफ़ा होता है। हदीस पाक में है ख़ादिम ए रसूल मक़बूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सय्यदना हज़रत अनस रदी अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: कि मुझसे मेरे आक़ा सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने इरशाद फरमाया: बेटे जब भी घर में दाख़िल हुआ कर, या घरवालों से मिल, तो सलाम किया कर। ये सलाम करना तेरे और तेरे घरवालों के लिए ख़ैर और बरकत का सबब होगा। 

एक और मक़ाम पर हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम इरशाद फरमाते हैं !

सय्यदना हज़रत इमरान बिन हुसैन रदी अल्लाहु अन्हु  से मर्वी है कि एक शख़्स ने हज़ूर अकदस सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम की बारगाह अकदस में हाज़िर होकर, अस्सलामु  अलैकुम कहा। रसूल ए मुकर्रम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने उस शख्स को जवाब से नवाज़ा और फरमाया (इसके लिए दस नेकीयाँ हैं)। इसके बाद दूसरा शख़्स हाज़िर ए बारगाह हुआ। उसने सलाम करते हुए, अस्सलामु-अलैकुम-व-रहमतुल्लाह कहा। हज़ूर सय्यद ए आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने जवाब से नवाज़ कर फरमाया (इसके लिए बीस नेकीयाँ हैं)। फिर इसके बाद एक और साहिब हाज़िर हुए और उन्होंने अस्सलामु-अलैकुम-व-रहमतुल्लाहि व बरकातुहु, के ज़रिए सलाम पेश किया। आक़ा करीम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने इनको भी जवाब से नवाज़ कर फरमाया (इसके लिए) तीस नेकीयाँ हैं।

आपने पढ़ा  कि सलाम करने में हमारा कितना फायदा है। 

दोस्तों यहाँ एक बात का और ख्याल रखें की जब हम सलाम करते हैं तो बहुत से लोगों को देखा गया है के वह जब सलाम करते हैं, तो ऐसा कहते हैं, सलावालेकुम, या सलामालेकुम, वगैरह यानी सलाम करते वक़्त सलाम सही नहीं करते हैं और आपने ऊपर एक दो मिसाल पढ़ी सलाम की.सलावालेकुम, या सलामालेकुम, वगैरह तो ऐसा सलाम करना सही सलाम करना नहीं है बल्के यह तरीका गलत है , जो तरीका सलाम का सही है , वोह यह है, के जब आप किसी को सलाम करें तो इस तरह करें "अस्सलामु अलैकुम" यह सही सलाम है, और आपको में यह कहना चाहूँगा के जब आप सलाम करें तो अच्छे अंदाज़ और अच्छे अल्फाजों का इज़ाफा करके सलाम करें . इस तरह "अस्सलामु-अलैकुम व रहमतुल्लाही-व-बरकातुहु" ताके हमें  ज़्यादा से ज़्यादा नेकियाँ और सवाब मिले , और सलाम का जवाब देने वाला भी अच्छे अंदाज़ और अच्छे अलफ़ाज़ में जवाब दे , यानी जवाब इस तरह दे, वअलैकुमुस्सलाम  व रहमतुल्लाह व बरकातहु.!

अब आदत बना लें कि जब भी किसी मुसलमान से मुलाकात करेंगे तो सलाम ज़रूर किया करेंगे।

आइए अब आप दरूद मुक़द्दस की फ़ज़ीलत में, एक हदीस पाक पढ़  लीजिए, उम्मीद है कि आप इश्क़ ओ मोहब्बत में डूब कर दिल की अताह गहराईयों से दरूद पाक पढ़ेंगे 

सय्यदना हज़रत अनस बिन मालिक रदी अल्लाहु अन्हु  कहते हैं कि हज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया। जो शख़्स मुझ-पर एक-बार दरूद पाक पढ़ता है अल्लाह अज़्ज़वजल उस-पर 10 र-हमतें नाज़िल फरमाता है, नामाए-आमाल से दस गुनाह मिटा देता है और दस दरजात बुलंद फरमा देता है। इस हदीस पाक से मालूम हुआ कि एक बार दरूद पाक पढ़ने में कम से कम तीस फायदे हैं। दस रहमतें नाज़िल होंगी, दस गुनाह कम होंगे और दस दरजात बुलंद होंगे। लिहाज़ा हमें सलाम करने और दरूद पाक पढने की आदत डाल लेनी चाहिए ताकि जो सलाम करने और दरूद पाक पढने की बरकत व फ़ज़ीलत है उसके हम मुसतहिक़ हों ।


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