name ahmad v Muhammad aur islami namon की अहमियत व फज़ीलत
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नाम अहमद व मोहम्मद और इस्लामी नामों की फज़ीलत
अस्सलामु अलैकुम: इस तहरीर में "नाम अहमद व मोहम्मद की फज़ीलत।" हदीस शरीफ की रौशनी में बताने की कोशिश करूँगा कि इन दोनों नामों की फज़ीलत व बरकत कितनी है। ताकि मुसलमान अपने यहाँ पैदा होने वाले बच्चों का नाम सरकार दो आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के इन नामों से बरकत हासिल करते हुए रखें।
औलाद अल्लाह की नेमत है और जन्नती फूल और अच्छे नाम का इंतेखाब
अल्लाह तआला का लाख-लाख शुक्र है के वह इंसान को औलाद जैसी नेमत अता फ़रमाकर उसे राहत व मुसर्रत और बेइंतेहा खुशी बख़्शता है। औलाद के सबब अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त घरों में बरकतें पैदा करता है। हज़रत खौला बिन्ते हकीम रदी अल्लाहु अन्हा से मर्वी है के अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फ़रमाया:
"औलाद जन्नत के फूलों में से एक फूल है।"
इसलिए मुसलमानों, इस जन्नती फूल की हिफाज़त करो, इसकी निगहबानी करो यानी इसकी अच्छी तालीम व तरबीयत करो और पैदा होने के बाद इसके अच्छे नामों का इंतेखाब करो ताकि अच्छे नामों का असर इस पर ज़ाहिर हो। बुरे नामों से बचो। दुनियादारों या फिल्मी दुनिया के अदाकारों के नाम पर अपनी औलाद का नाम मत रखो और न ही बे-मानी और भद्दे नाम रखो कि सुनने वाला मज़ाक उड़ाए।
बच्चों के लिए गैर-इस्लामी नाम रखने से परहेज़
आज समाज के मुस्लिम बच्चों और बड़े बुज़ुर्गों के नामों की फेहरिस्त तैयार कीजिए तो ऐसा लगता नहीं कि ये मुसलमानों के नाम हैं। "बुद्धू", "सोनू" "मोनू" वगैरह इस तरह के नाम रखे जाते हैं। ऐसे नाम सुनने के बाद हंसी भी आती है और अफसोस भी होता है।
अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम का नाम मुबारक
आइए, हम ऐसे नाम की फज़ीलत बयान करें जो बहुत मक़बूल भी है और अल्लाह को बहुत महबूब भी। और यह ऐसी-हस्ती का-नाम है जिसका मुक़ाम व मर्तबा सबसे ऊँचा और रुतबा सबसे बुलंद है। और वह हमारे और आपके नबी जनाब अहमद ए मुजतबा मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम हैं।
सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान मुहद्दिस बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह इरशाद फ़रमाते हैं,
सबसे आला व औला हमारा नबी
सबसे बाला व वाला हमारा नबी
ख़ल्क़ से औलिया, औलिया से रुसुल
और रसूलों में आला हमारा नबी
सारे अच्छों में अच्छा समझिए जिसे
है उन अच्छों में अच्छा हमारा नबी
इस्लामी नामों का असर और बरकतें
इसलिए बुज़ुर्गों और दोस्तों! जब नबियों और सालेहीन के नामों पर अपने-बच्चों का नाम रखना चाहो, तो खुदा के हबीब, मखलूक के तबीब, हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के नामों का चुनाव करो। खासकर अपनी औलाद का नाम मुहम्मद या अहमद रखो, क्योंकि तमाम नामों में, यहाँ तक कि अब्दुल्लाह, अब्दुर्रहमान, और वो तमाम नाम जो अल्लाह-तआला के नामों-के-साथ "अब्द" लगाकर रखा गया हो, उन सब में बेहतर और पसंदीदा नाम मुहम्मद और अहमद हैं।
क्योंकि ये वो नाम हैं जो अल्लाह को पसंद हैं और खुद अल्लाह ने अपने हबीब का ये नाम, यानी मुहम्मद और अहमद, रखा है। और इन दोनों नामों की इतनी बरकतें और फायदे हैं कि कलम टूट जाएं, स्याही खत्म हो जाए, कागज़ कम पड़ जाएं और लिखने वाले थक जाएं, लेकिन इन दोनों नामों की फज़ीलत और बरकत खत्म नहीं हो सकती।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है:
"संग-ए-मरमर की तारीफ न किया कर मुझसे,
आँसुओं से जो मैं एहकाम-ए-मुहम्मद लिख दूं।
चूमने के लिए झुक जाएगा ये ताजमहल,
टूटे पत्थर पे अगर नाम-ए-मुहम्मद लिख दूं।"
और डॉक्टर इकबाल कहते हैं:
"है कुव्वत-ए-ज़ीस्त से हर पस्त को बाला कर दे,
दहर में नाम-ए-मुहम्मद से उजाला कर दे।"
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया:
"जिसका नाम मेरे नाम से बरकत की उम्मीद के साथ रखा गया, उस दिन से लेकर सुबह-ए-क़यामत तक बरकतों का नुज़ूल होता रहेगा।"
जन्नत में दाखिल होने का हुक्म नामों के ज़रिए
हुज़ूर सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया:
"क़यामत के दिन दो शख्स अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल के सामने खड़े किए जाएंगे। तो अल्लाह तआला हुक्म देगा कि इन दोनों को जन्नत में दाखिल कर दो। जब जन्नत में इन दोनों को जाने-का-हुक्म दिया जाएगा तो इन्हें ताज्जुब होगा, क्योंकि इनके पास कोई ऐसा अमल नहीं था जिससे ये जन्नत के हक़दार हो जाते।"
"अर्ज करेंगे: मौला! हम दोनों किस बिना पर जन्नत के हक़दार हो गए, जबकि हमने कोई ऐसा अमल भी नहीं किया जिसके बदले में हमें जन्नत दी जाए?"
"तो अल्लाह तआला फरमाएगा: ऐ मेरे बंदों! तुम दोनों जन्नत में दाखिल हो जाओ क्योंकि मैंने कसम खाई है के वो शख्स जहन्नम की आग में हरगिज़ दाखिल नहीं हो सकता जिसका नाम मेरे हबीब के नाम पर मुहम्मद या अहमद हो। (तुम में से एक का नाम अहमद है और दूसरे का नाम मुहम्मद है, और ये दोनों नाम मेरे हबीब के हैं। इसलिए मैंने इस नाम की बरकत से तुम दोनों को बख्श दिया और जन्नत का हक़दार बना दिया।")
मसनद-उल-फिरदौस, जिल्द 5, सफ़ा 535।
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया:
जिस के यहाँ लड़का पैदा हो और उसने मेरी मोहब्बत में और मेरे नाम से बरकत हासिल करने की नीयत से उसका नाम मुहम्मद रखा, तो वह शख्स और उसका लड़का, जिसका नाम मुहम्मद रखा गया, दोनों जन्नत में दाखिल किए जाएंगे।"(कंज़ुल उम्माल)
हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि अल्लाहु तआला अन्हुमा) से मर्वी है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया क़यामत के दिन पुकारने वाला पुकार कर कहेगा कि जिसका नाम अहमद है, वह इस नाम की बरकत की वजह से जन्नत में बिना हिसाब व किताब के दाखिल हो जाए।"
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम के नाम की बरकतें
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया, जिस की बीवी के पेट में बच्चा हो और वह पक्का इरादा कर ले कि जो बच्चा होगा, उसका नाम मुहम्मद रखेगा, तो अल्लाह तआला उसे बेटा ही अता फरमाएगा। और जिस घर में मुहम्मद नाम का कोई शख्स हो, तो अल्लाह तआला उस घर में बरकतें नाज़िल फरमाता है।"
हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु) से मर्वी है के मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम को फरमाते हुए सुना है के क्या तुम में से किसी की बीवी हामिला है, यानी पेट में बच्चा है? एक शख्स ने अर्ज़ किया: हाँ, या रसूल अल्लाह! मेरी बीवी के पेट में बच्चा है। तो सरकार ने फरमाया: जब तुम अपने घर जाना, तो अपनी बीवी के पेट-पर हाथ रख कर यह दुआ पढ़ना:
"बिस्मिल्लाह, अल्लाहुम्मा इन्नी इस्म्मीय्युह मुहम्मदा"
(अल्लाह-के-नाम से शुरू करता हूँ, मैं इस बच्चे का नाम मुहम्मद रखता हूँ।)
क्योंकि अगर तुम ऐसा करोगे, तो लड़का ही पैदा होगा।"
हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु) से मर्वी है:
जब मोमिन अपने लड़के का नाम मुहम्मद रखता है, तो अल्लाह अज़्ज़ व जल उसे एक साल-की इबादत-का-सवाब अता फरमाता है और उसके दस दर्जे बुलंद फरमाता है।"
"सुब्हानल्लाह! इतना प्यारा और बाबरकत नाम है मेरे प्यारे आका का। इंसान अपने बेटे का यह नाम रख ले सरकार की मोहब्बत में, तो बेटा भी जन्नती हो जाए, बाप भी जन्नती हो जाए, माँ भी जन्नती हो जाए। और हुज़ूर के नाम की बरकत घर में और ज़िन्दगी में मुसलाधार बारिश की तरह बरसने लगे। यही नहीं, इस नाम की बरकत से मुसीबत व बला भी दूर हो जाए, और परेशानियाँ-खत्म हो जाती हैं।
बच्चों के लिए गैर-इस्लामी नाम रखने से परहेज़
अगर अल्लाह तआला बेटी अता फरमाए, तो उसका नाम भी अच्छा और इस्लामी रखे। कुछ लोग अपनी बच्चियों का नाम फ़िल्मी अदाकाराओं के-नाम पर नाम रखते हैं। किसी का नाम "जूंही", किसी का नाम "करीना", किसी का नाम "करिश्मा", किसी का नाम "सोनी"। इस तरह के नाम रखते हैं, जो गैर-इस्लामी होते हैं। इसी लिए हमारी बच्चियों में बे-हयाई पाई जाती है। ज़ाहिर है के नाम का असर तो पैदा होगा।
इस्लामी नामों का असर और बरकतें
अपनी बच्चियों का नाम इस्लामी रखिए। सरकार की मुकद्दस बीवियों और आपकी प्यारी बेटियों के नाम पर नाम रखिए। वक्त की बड़ी-बड़ी अल्लाह वाली खातून जैसे: "राबिआ बसरीया, राबिआ अदविया, उम्म-उल-खैर उम्मतुल-जब्बार, आसिया, मरियम, हाजिरा और सारा वगैरा।"
बेटियों के लिए हज़रत फातिमा का नाम क्यों चुना जाए?
और खास तौर पर अपनी बेटियों का नाम सरकार की चहेती बेटी, ख़ातून-ए-जन्नत, जन्नती औरतों की सरदार, हज़रत फातिमा ज़हरा तैय्यिबा ताहिरा (रज़ि अल्लाहु तआला अन्हा) के नाम पर फातिमा रखिए। "के फातिमा नाम की बहुत बर-कतें और फज़ी-लतें हैं।"
हुज़ूर सरवर-ए-दो आलम सल्लल्लाहु-अलैहि-वसल्लम ने फरमाया:
मैंने अपनी-बेटी का नाम-फातिमा इसलिए रखा, क्योंकि अल्लाह तआला ने इसको और इससे मोहब्बत करने वाले को जहन्नम से आज़ाद कर दिया है।"