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ek kafan chor ki dastan गुनाह, सज़ा और तौबा का वाक़िया

कफ़न चोर की दास्तान: गुनाह, सज़ा और तौबा का वाक़िया

दुनिया में इंसान गुनाह करता है, और गुनाह इंसान की दुनिया बल्कि उसकी आख़िरत को भी तबाह कर देते हैं। इस वाकिए में एक कफ़न चोर के इबरतनाक वाक़िये को बयान किया गया है, जिसमें उसने गुनाह किया, अपनी ग़लती का अंजाम भुगता, और आख़िरकार तौबा का रास्ता अपनाया। यह वाक़या इंसानों के लिए एक सबक़ है कि गुनाह और जुर्म हमेशा बुरे अंजाम की तरफ़ ले जाते हैं।  

एक अजनबी और उसका आधा चेहरा

कफ़न चोर, हज़रत अबू इस्हाक़ रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि एक शख़्स हमारे यहाँ बार-बार हाज़िर होता लेकिन उसका आधा चेहरा ढका रहता था। एक दिन मैंने उससे पूछा कि हमारे यहाँ अक्सर आता है लेकिन तेरा आधा चेहरा छुपा क्यों रहता है। उसने कहा, मुझे अमान दें तो बताऊँ। मैंने कहा, तुझे अमान है। 

गुनाह की दुनियावी सज़ा

उसने कहा: मैं क़ब्रें खोदकर मुर्दों के कफ़न चुराता था। एक दफ़ा एक औरत को दफ़न किया गया, मैंने उसकी क़ब्र खोदी और उसके कफ़न में से बड़ी चादर और लिफ़ाफ़ा पकड़कर खींचने लगा, लेकिन वह औरत अपने कफ़न पर क़ाबू पाए हुए थी, गोया वह अपनी तरफ़ खींचती थी और मैं अपनी तरफ़। मैंने उससे कहा कि तू मुझ पर ग़लबा पा नहीं सकती। मेरा यही कहना था कि मैं घुटनों तक ज़मीन में धँस गया। इस पर मैंने कफ़न छोड़ा तो उस औरत ने ज़ोर से मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारा।

जैसे ही उसने चेहरा दिखाया तो वाक़ई उसके चेहरे पर पाँच उंगलियों के निशान मौजूद थे। 

क़ब्र का वाकिआ और तौबा का रास्ता

मैंने पूछा, फिर क्या हुआ? उसने कहा, फिर मैं डर के मारे क़ब्र से बाहर निकला और क़ब्र पर मिट्टी डालकर चला आया और सच्ची तौबा कर ली कि आइंदा ऐसा काम नहीं करूँगा। 

इमाम औज़ाई की नसीहत

हज़रत अबू इस्हाक़ रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि यही वाक़या मैंने इमाम औज़ाई को लिखा। आपने जवाब भिजवाया कि उससे पूछ लेना चाहिए था कि इतना अरसा तो मुर्दों के कफ़न चुराता रहा, उनके चेहरों का रुख़ किस तरह पाया। 

अंजाम-ए-बुरा: गुनाहों का नतीजा

हमने उस शख़्स को बुलाकर पूछा तो उसने कहा, कुछ मुर्दों के चेहरे क़िबला रुख़ होते और कुछ के क़िबले से फिरे हुए नज़र आते थे। मैंने यही कैफ़ियत इमाम औज़ाई को लिखी तो उन्होंने तीन बार पढ़ा: *इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिउन।* हमने वजह पूछी तो उन्होंने फ़रमाया: जिन लोगों के चेहरे क़िबले से फिरे हुए थे, वे ऐसे थे जिनकी ज़िंदगी किताब-सुन्नत के ख़िलाफ़ बसर हुई। और क़ायदा है कि गुनाहों और जुर्मों की कसरत बुरे अंजाम का सबब बनती है। बल्कि अक्सर गुनाहों और बड़े-बड़े जुर्मों की कसरत कुफ़्र की मौत का बाइस होती है।

यह वाक़या हर इंसान को यह सबक देता है कि किताब और सुन्नत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारनी चाहिए। गुनाह और जुर्म चाहे कितने भी मामूली हों, गुनाह ,गुनाह है , और गुनाह से दुनिया बर्बाद होती है और आखिरत में सख्त अज़ाब सज़ा है। जिन लोगों के चेहरों का रुख़ क़िबले से फिरा हुआ था, वह उनकी नाफ़रमानी और गुनाहों की वजह से था। आख़िरत में कामयाबी उसी को मिलेगी जिसने अल्लाह और उसके रसूल के अहकामात पर अमल किया और गुनाहों से बचने का रास्ता अपनाया।


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