qtESQxAhs26FSwGBuHHczRGOCdrb3Uf78NjGuILK
Bookmark

shabe qadar ki azmat और ख़ास दुआ

 शब ए क़द्र

अस्सलामु अलैकुम शब ए क़द्र क्या है दोस्तों शब ए क़द्र बहुत अज़मत व फज़ीलत वाली रात है यह वह रात है जो हज़ार महीनों से अफ़ज़ल है के इस रात जिसने इबादत की गोया उसने तिरासी साल चार माह इबादत की शब ए क़द्र वह रात है के जिसमें क़ुरआन पाक नाज़िल हुआ। क़ुरआन मजीद लौह-ए-महफ़ूज़ से आसमान-ए-दुनिया पर शब ए क़द्र में उतारा गया। हज़ार महीने तक इबादत करने का जिस क़दर सवाब है, उससे ज़्यादा शब ए क़द्र में इबादत करने का सवाब है। अल्लाह तआला के हुक्म से रूह-उल-कुद्स हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम बेशुमार फ़रिश्तों के हुजूम में उतरते हैं, ताकि इस रात में ख़ैर-ओ-बरकत से ज़मीन वालों को मुस्तफ़ीज़ करें और इस मुबारक रात में हज़रत जिब्रईल और दीगर फ़रिश्ते इबादत करने वाले बंदों पर सलाम भेजते हैं और उनके हक़ में दुआ-ए-ख़ैर करते हैं और ये बरकत-ओ-रहमत का सिलसिला इस रात शाम से सुबह तक जारी रहता है।

लैलत-उल-क़द्र के मआनी

लैलत-उल-क़द्र के मआनी अज़मत-ओ-शरफ़ के हैं, यानी शराफ़त-ओ-क़द्र के बाइस इसे शब ए क़द्र कहा गया है और ये भी मंक़ूल है कि शब ए क़द्र इस लिए कहते हैं कि इस रात में तमाम मख़लूक़ात के लिए जो कुछ तकदीर-ए-अज़ली में लिखा गया है, उसका जो हिस्सा इस साल में रमज़ान से अगले माहे रमज़ान तक पेश आने वाला है, वो उन फ़रिश्तों के हवाले कर दिया जाता है जो कायनात की तदबीर के लिए मअमूर हैं। हर इंसान की उम्र, मौत, रिज़्क़, बारिश की मिक़दारें मुक़र्ररा वग़ैरा फ़रिश्तों को लिखवा दी जाती हैं, यहाँ तक कि जिस शख़्स ने इस साल में हज करना होता है, वो भी लिखवा दिया जाता है। उलमा-ए-किराम फ़रमाते हैं, निस्फ़ शाबान की शब जिसे शब-ए-बरात भी कहते हैं, उसमें फैसले इज्माली तौर पर होते हैं, फिर उनकी तफ़सीलात शब ए क़द्र में लिखी जाती हैं। (मअरिफुल क़ुरान, तफसीर मज़हरी)

इमाम अबू बक्र अल-वर्राक़ फ़रमाते हैं, इस शब को शब ए क़द्र इस लिए कहते हैं कि ये रात इबादत करने वाले शख़्स को साहिब-ए-क़द्र बना देती है। (तफसीर क़ुरतुबी) 

हज़रत अल्लामा राज़ी नक़्ल करते हैं, इस रात को शब ए क़द्र इस लिए कहते हैं के इस रात में अल्लाह तआला ने अपनी क़ाबिल-ए-क़द्र किताब, क़ाबिल-ए-क़द्र उम्मत के लिए साहिब-ए-क़द्र रसूल नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की मअरिफ़त नाज़िल फ़रमाई। (तफसीर ए कबीर)

शब-क़द्र में फरिश्तों का नुज़ूल 

शब-क़द्र में हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम फरिश्तों की जमाअत के साथ उतरते हैं और जो खड़े होकर या बैठकर अल्लाह तआला की इबादत में मसरूफ रहता है या ज़िक्र करता है उसको दुआ देते हैं और मुसाफ़ह भी करते हैं।

शब-क़द्र की ख़ास दुआ

उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरयाफ़्त किया कि अगर मैं शब ए क़द्र को पाऊं तो क्या दुआ करूं। आपने फ़रमाया: ये दुआ मांगो:

اللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفُوٌّ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّي

(अल्लाहुम्मा इन्नका अफ़ुव्वुन तुहिब्बुल अफ़्वा फ़अफ़ु अन्नी)

तर्जमा: या अल्लाह! तू बहुत माफ़ क-रने वा-ला है और माफी को पसन्द करता है, मेरी ख़ताएं माफ़ फ़रमा।

अमीरुल मोमिनीन सैय्यदुना हज़रत अली अल-मुर्तज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं, जो शख़्स शब ए क़द्र में सूरह क़द्र सात मर्तबा पढ़ेगा, उसे अल्लाह तआला हर मुसीबत-व-बला से आफ़ियत नसीब करेगा और उसके लिए सत्तर हज़ार फ़रिश्ते जन्नत की दुआ मांगेंगे।

इस रात में कसरत से नवाफ़िल, तिलावत-ए-क़ुरआन, इस्तिग़फ़ार और दरूद शरीफ़ पढ़ने का बड़ा सवाब है।

शब ए क़द्र में चार झंडे

शब ए क़द्र में रहमत के फ़रिश्ते चार झंडे गाड़ देते हैं। मग़फ़िरत का आलीशान झंडा हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की क़ब्र-ए-अनवर (रौज़ा-ए-अक़दस) पर गाड़ देते हैं, दूसरा झंडा रहमत के फ़रिश्ते काबा की छत पर नस्ब कर देते हैं, तीसरा करामत का झंडा बैतुल मुक़द्दस पर और मोहब्बत का झंडा आसमान-व-ज़मीन के दरमियान लहराते हैं। (नुज़हत उल मजालिस)

दोस्तों यह थी शब-क़द्र के बारे में मालूमत मुझे उम्मीद है इस जानकारी से आपके इल्म में ज़रूर इज़ाफा हुआ होगा।


एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें

please do not enter any spam link in the comment box.