नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुहब्बत की अलामात
नबी करीम रऊफो रहीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत की बहुत सी अलामतें हैं, में यहां पर उनमें से फक्त 10 अलामतों को तहरीर कर रहा हूं।
- जिस शख्स से मोहब्बत होती है इंसान उसकी इताअत और इत्तेबा करता है सो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मोहब्बत की अलामत यह है कि आपके अहकाम पर अमल किया जाए आपके नक्शे कदम पर चला जाए और जिन कामों से आपने मना किया है उनसे इज्तिनाब किया जाए ख्वाह तकलीफ हो या राहत खुशी हो या रंज तंग दस्ती हो या खुशहाली हर हाल में हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के अफ्आल की इत्तेबा और हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की सुन्नतों की इक़तदा की जाए और अपने नफ़्स की ख्वाहिशों और तकाज़ों पर हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की सुन्नत को तरजीह दी जाए हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की इत्तेबा का मतलब यह है कि हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की मुत्लक़न इत्तेबा की जाए ख्वाह किसी काम की हिकमत अकल में आए या ना आए और किसी फअल का फायदा समझ में आए या ना आए जो काम हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने किया हो उस काम को सिर्फ इस नियत से किया जाए के चूँके हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने यह काम किया है इसलिए हम कर रहे हैं, ज़ैद बिन असलम रदी अल्लाहु अन्हु अपने वालिद से रिवायत करते हैं के मैंने देखा कि हज़रत उमर रदी अल्लाहु अन्हु बिन खत्ताब ने हजरे अस्वद को बोसा दिया और कहा अगर मैंने यह ना देखा होता के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने बोसा दिया है तो मैं तुझे कभी बोसा ना देता ( बुखारी शरीफ)
- मोहब्बत की दूसरी अलामत यह है के जिस शख्स को किसी से मोहब्बत होती है वह अपने महबूब का ना तो कोई ऐब देख सकता है और ना ही उसे सुन सकता है जैसा कि हज़रत अबू दर्दा रदी अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया किसी शै की मोहब्बत तुमको (उसका ऐब देखने से) अंधा कर देती है और (उसका ऐब सुनने से) बहरा कर देती है (सुनन अबू दाऊद)
- मोहब्बत की तीसरी अलामत यह है कि सच्ची मोहब्बत करने वाला हर वक्त अपने महबूब के ज़िक्र में रत्बुल-लिसान रहता है कभी उसके अक्वाल का ज़िक्र करता है कभी उसके अफआल का तज़किरा करता है गर्ज़ के उसका दिल हर वक्त अपने महबूब के साथ अटका रहता है। मुहिब्बे रसूल वह नहीं जो ईद मिलादुन्नबी की महफिल सजा ले फिर बकिया साल सूद रिश्वत ज़िना झूठ चोरी शराब खोरी और नमाज़ न पढ़ना वगैरह वगैरह, जैसे क़बीह कामों में गुज़ार दे, तो वह शख्स हरगिज़ हरगिज़ मोहिब्बे रसूल नहीं हो सकता हां उस शख्स को मोहिब्बे रसूल कहा जा सकता है जो रोज़ाना दीगर फराइज़ के साथ-साथ हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की बारगाहे अक़दस में बिला नागा दरूदो सलाम का नज़राना भी पेश करते रहता है।
- मोहब्बत की चौथी अलामत यह है कि महबूब का ज़िक्र सुनने से मुहिब खुश होता है लिहाज़ा जब हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की नअत पढ़ी जा रही हो और आपके फज़ाइल व कमालात बयान किए जा रहे हों तो जिन चेहरों पर खुशी व मसर्रत के आसार हों जो चेहरे फूल की तरह खिल जाएं जो लोग आपकी तारीफ सुनकर वज्द में आने लगें और मुसर्रत से नारे लगाएं वह हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के मुहिब हैं और जिन लोगों के चेहरे हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के फज़ाइल व कमालात सुनकर मुरझाएं जो लोग हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के मुहामिद व मुहासिन सुनकर गेज़ो गज़ब में आ जाएं जो लोग हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का ज़िक्र करने और हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर सलातो सलाम पढ़ने से रोकें और मना करें वह हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के हरगिज़ मुहिब नहीं हैं।
- मोहब्बत की पांचवी अलामत यह है कि हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के ज़िक्र के वक़्त हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की ताज़ीम व तौकीर और हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का इस्म मुबारक सुनने पर इज़हारे खुज़ूअ व खुशूअ किया जाए जैसा की शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस लिखते हैं : अबू इब्राहिम यहया फरमाते हैं के हर मुसलमान पर लाज़िम है के जब उसके सामने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का ज़िक्र किया जाए तो अदब और अहतराम से सुने और बदन को जुंबिश तक ना दे और खुद पर इस तरह हैबते जलाल तारी कर ले गोया के वह हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के सामने खड़ा है (मदारिजुन नुबुव्वत)
- मोहब्बत की छठी अलामत यह है कि महबूब का ज़िक्र सुनने के बाद महबूब के हक में दुआ करे, इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मोहब्बत की अलामत यह है कि जब कोई मुसलमान आपका नाम ले या उसके सामने आपका नाम लिया जाए तो वह हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर सलातो सलाम (दरूद शरीफ) पढ़े, जैसा के इब्ने क़य्यिम जौज़ी लिखते हैं, इमाम अबू जअफर तिहावी और अल्लामा अबू अब्दुल्लाह हलीमी का मसलक यह है कि जब भी कोई शख्स हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का ज़िक्र करे तो उस पर हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के ज़िक्र के साथ दरूद शरीफ पढ़ना फर्ज़ है अगर नहीं पढ़ेगा तो गुनाहगार होगा।
- मोहब्बत की सातवीं अलामत यह है कि मुसलमान के दिल में हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की ज़ियारत और हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम से मुलाकात का शौक हो, हजरत अबू हुरैरा रदी अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं के हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया मेरी उम्मत में मुझसे सबसे ज़्यादा मोहब्बत करने वाले लोग मेरे बाद होंगे, उनमें से किसी एक शख्स की यह तमन्ना होगी के काश उसके तमाम अहल और माल के बदले में उसको मेरी ज़ियारत हो जाए। (सही मुस्लिम)
- मोहब्बत की आठवीं अलामत यह है कि इंसान महबूब के महबूबों से भी मोहब्बत करता है, इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से मोहब्बत का तक़ाज़ा यह है कि हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम के असहाब अहले बैत और अज़वाजे मुतहरात से भी मोहब्बत की जाए, हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम का इरशाद मुबारक है, मेरे सहाबा किराम के बारे में अल्लाह तआला से डरो मेरे बाद उन्हें एतराज़ात का निशाना ना बनाना, जिसने उनसे मोहब्बत की उसने मेरी मोहब्बत की वजह से मोहब्बत की, और जिसने उनसे बुग्ज़ रखा, उसने मेरे साथ बुग्ज़ की वजह से बुग्ज़ रखा, जिसने उन्हें अज़ीयत पहुंचाई, उसने मुझे अज़ीयत पहुंचाई और जिसने मुझको अज़ीयत पहुंचाई, उसने अल्लाह तआला को अज़ीयत दी, (नाराज़ किया) और जिसने अल्लाह तआला को अज़ीयत पहुंचाई, क़रीब है के अल्लाह तआला उसे पकड़े। (मिश्कात उल मसाबीह)
- मोहब्बत की नवीं अलामत यह है कि जिस शख्स से मोहब्बत हो वह उसकी निस्बतों से भी मोहब्बत करता है, सो जिसको रसूलअल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से मोहब्बत है वह कुरान मजीद से मोहब्बत करेगा, वह काबा से मोहब्बत करेगा कि, हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम उसका तवाफ करते थे, वह गारे हिरा से मोहब्बत करेगा के उसमें हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम पर पहली वही नाज़िल हुई थी, वगैरह वगैरह।
- मोहब्बत की दस्वीं अलामत यह है कि मुहिब, महबूब के आ,दा से अदावत रखी जाए और जो आपके दीन के मुखालिफ़ हों उनकी मुखालिफत की जाए।
अल्लाह तआला हमको हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की सच्ची पक्की मुहब्बत और आपकी सुन्नतों पर आपके अहकाम पर और आपके नक़्शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।
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